विदेशी पुस्तक में भी भलुनीधाम स्थल की चर्चा
भगवान इन्द्र ने भलुनीधाम में की थी तपस्या
सिद्धशक्तिपीठ भलुनीधाम में पूजा के लिए उमड़ते है श्रद्धालु
विदेशी पुस्तक में भी स्थल की चर्चा
साल में दो बार लगता है मेला
दुसरे राज्यो से भी यहां पहुचते है श्रद्धालु -
दिनारा
बिहार के सिद्धशक्तिपीठो में से एक मां यक्षिणी भवानी के नाम से प्रसिद्ध
मातारानी का दर्शन करने प्रतिपदा को भारी संख्या में श्रद्धालु पहुचे।
जहां सुबह तीन बजे से ही दर्शन के लिए भक्तो की लंबी कतार लग गई।
यह स्थान रोहतास जिले के दिनारा प्रखण्ड में अवस्थित है। माॅ यक्षिणी
भवानी को लोग भलुनी भवानी के नाम से भी जानते है। प्राचीन काल में घनघोर
जंगल के बीच अवस्थित माता का स्थान आज जंगल कट जाने के कारण मैदान में आ
गया है। इस स्थान की प्राचीनता के बारे में सही आकलन किसी के पास नही है।
क्यो पड़ा भलुनीधाम नाम
वेद पुराण शास्त्र संम्मत मान्यता है कि जिसने भी श्रद्धा व सच्चे मन से
मां की अराधना व पूजा किया। माता ने सबकी मनोकामना पूर्ण की। पुराणो के
अनुसार बताया जाता है कि भगवान इन्द्र ने एक लाख वर्ष तक यहा तपस्या किया
जिसके बाद उसे माता ने दर्शन दिए।भलुनीधाम के चारो तरफ घनघोर जंगल था।
जिसमें भारी संख्या में भालू रहते थे इसी कारण इसका नाम भलूनीधाम पड़ा।
सिद्धशक्तिपीठो में की जाती है गणना
भलुनीधाम के बारे में शास्त्र व पुराणो में भी विस्तार पुर्वक उल्लेख
मिलता है। माता सती के अंग गिरने से एक सौ दस शक्ति पीठ बने।जिनमें एकावन
सिद्ध शक्तिपीठ व उनसठ उपपीठ बने।उनमें से रोहतास जिला में चार सिद्ध
शक्तिपीठ है।जिनमें यक्षिणी धाम (भलुनीधाम) का नाम भी प्रसिद्ध है।कंचन
नदी के तीर पर अवस्थित इस धाम से कालांतर में नदी बढ़ते बढ़ते एक कि मी दुर
पहुच गयी है। देवी भागवत पुराण, देवी पुराण, मार्कण्डेय पुराण केनोपनिषद,
मुंडमाल संहिता, दश महा विद्या तंत्र, शक्ति संगम, तंत्रकाली, खंड
गायत्री रहस्य पद्धति, तथा योगिनी तंत्र आदि सैकड़ो धार्मिक ग्रंथो में
आदि शक्ति जगदंबा यक्षिणी भवानी को काली, उमा दुर्गा, लक्ष्मी, व सरस्वती
आदि नामो से संबोधित किया गया है।
यक्षिणी सिंह पृष्ठस्था कंकाली वृषवाहना ।
हंसा रूडा सूरण्येष्ठा सर्पराज्ञ हि वाहना ।।
देवी भागवत में कहा गया हैे कि एक लाख वर्ष तपस्या करने से जो फल मिलता
है वह एक बार माॅ यक्षिणी के दर्शन से प्राप्त हो जाता है।
विदेशी यात्री भी आया था भलुनीधाम
फ्रासीसी यात्री फ्रांसीसी बुकानान ने भी अपनी पुस्तक ’ए टुर रिपोर्ट आॅफ
नार्दन इंडिया’ 1812-13 में इस स्थल के बारे में विस्तार पुर्वक उल्लेख
किया है।जिससे इस स्थल के अति प्राचीन होने का स्पष्ट प्रमाण मिलता है।
वैसे स्थानीय लोग इस स्थल के सौ पीढ़ी से भी अधिक पुराना बताते है।
पुरे देश से आते है श्रद्धालु
भलूनीधाम सिद्धशक्तिपीठ मे पुजा करने के लिए साल में दो बार पुरे देश के के
विभिन्न भागो सं भारी संख्या में श्रद्धालु यहा पहुचते है। जहां चै़त्र
नवरात्र के बाद एक माह तक चलने वाला विशाल मेला लगता है। जिसमें सभी तरह
की दुकाने आती है।
50 एकड़ क्षेत्र में फैले जंगल के बीच अवस्थित यह शक्तिपीठ जंगलो की
अंधाधुध कटाई के कारण आज वृक्षो की कटाई के कारण खाली पड़ गया है।पुर्वजो
के अनुसार जिस जंगल में खैर, चंदन, देवदार सहित कई मुल्यवान वृक्ष थे आज
कटाई होने से उसमें मात्र गिनती के इमली,शीशम, मकोह के पेड़ बच गए
है।हालांकि इन वृक्षो को बचाने के लिए वर्षो से श्री यक्षिणी भेजपुरी
साहित्य समिति के संयोजक कन्हैया पंडित ने प्रशासन को कई बार अवगत कराया
लेकिन इन्हे सफलता नही मिली।
पहुचने का मार्ग
भलुनीधाम बनारस से सौ कि मी पुरब व पटना से सोै किमी पश्चिम पटना
बिक्रमगंज कोचस राजपथ के बडीहा मोड़ के पास व सासाराम से 50 कि मी उतर व
बक्सर से 50 कि मी दक्षिण रोहतास जिला के दिनारा प्रखण्ड में अवस्थित
है।जहा सालो भर मेला जैसा दृश्य रहता है लेकिन चैत्र नवरात्रि व आश्विन
शरद में यहा विशाल मेला लगता है। जिसमें लाखो की संख्या में दर्शनार्थाी
यहा पहुचते है।लेकिन धाम पर समुचित सुविधा के अभाव में उन्हें कष्ट उठाना
पड़ता है।किवदंती है कि भगवान परशुराम ने यहा यज्ञ किया था और हवन मंदिर
के उतर स्थित कुण्ड में हुआ था। जो कालांतर में पोखरा बन गया। आज उस
पोखरा की स्थिती अत्यंत दयनीय हो गयी है। वर्षो से पानी जमे होने के कारण
उसमें कीड़े पड़ गए है। इस स्थल से सरकार को प्रतिवर्ष लाखो रूप्ए की आमदनी
होती है। सरकारी भू संपदा भी यहा अत्यधिक है। जो प्रशासनिक उपेक्षा के
कारण अवैध अतिक्रमित है। स्थल की महता को देखते हुए यहा 1984 से ही ओ पी
बनाने की प्रक्रिया चल रही है।जो फाइलो में सिमटकर रह गयी है।जबकि इस
संबंध में तत्कालीन जिला समाहर्ता द्वारा सरकार के अवर सचिव को
पत्रांक1381 दिनांक 8.7.83 के द्वारा कार्रवाई कर पुलिस चैकी के निर्माण
के संबंध में पत्र भेजा गया है।जिसका विभिन्न थानो से काटकर मानचित्र व
भूमि भी उपलब्ध करा दिया गया है। इसके बावजुद आजतक इस दिशा में सकारातमक
कार्रवाई नही पुरी की जा सकी।
यक्षिणी माता के मंदिर के अलावे यहा सूर्य मंदिर,कृष्ण मंदिर,साई बाबा का
मंदिर,गणिनाथ मंदिर व रविदास मंइिर के अलावे दर्जनो छोटे बड़ै मंदिर
है।जहां पहुचने वाले लोगो को स्नान घर, शौचालय व आराम गृह सहित अन्य
बुनियादी सुविधाओ अभाव में घोर कष्ट होता है।
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